लडकियाँ आज भी उपेक्षित क्यों ? जी हाँ हमें यह जानने की जरुरत है की भारत देश में बेटियाँ आज भी उपेक्षित है ?
बेटियाँ आज भी उपेक्षित है ? बीसवी सदी बीतने को है. आजादी का सूरज चमका था, अतीत आजादी का सूरज चमका था, अतीत भारत के ललाट पर, परन्तु आजादी पाने के ५९ वर्ष पश्चात् भी जब देश की बेटियाँ की और दृष्टी जाती है, तो सहसा हमारे सामने वह रोगी आ खड़ा होता है, जिसे पूर्व में कोई रोग हुआ था, पर परिचायिकाओ के प्रमाद एवं असावधानी के कारण चिकित्सकों के सही निदान और ओषधि के अभाव में रोगी का रोग कम होने के स्थान पर बढता गया और अधिक दुर्लब हो जाने पर रोग की अनेक शाखाए फुल पड़ी.
बेटियाँ आज भी उपेक्षित है
यह विडंबना नहीं तो और क्या है, कि आज जिधर नजर जाती है, उधर ही भारत की नारी उपेक्षित दिखाई देती है. आज वह मानसिक तौर पर उपेक्षित है, सामाजिक दृष्टीकोण से उपेक्षित है.
वर्तमान की नजर से
वर्तमान आधुनिक समाज एवं बदलती विचारधाराएँ भले ही भारत की नारी को स्वतंत्र प्रदान करने का दम भरें. किन्तु वास्तविक स्वतंत्रता से नारी बाज भी वंचित है. हमने कई क्षेत्रो में महिलाओ को आगे बढते देखा है, परन्तु वास्तव में इस प्रत्यक्ष प्रगति से उनकी अप्रत्यक्ष कुंठा कहीं अधिक प्रगति पर है.
यह तो सर्वविदित है की भारतीय नारी सम्पूर्ण विश्व में सर्वश्रेष्ट और सर्वगुण संपन्न नारी कहलाती है, किन्तु यह कतु सत्य ही है कि आदिकाल से ही हमारे देश में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग उपेक्षा का शिकार होता आया है.
महिलाओ का महत्व
आज कुछ महिलाएँ अपना महत्त्व सिद्ध कर चुकी है और कुछ कर रही है, किन्तु मात्र इनकी सफलता को सम्पूर्ण भारतवर्ष की बेटियों का उत्थान नहीं माना जा सकता. यह सच है की भारतीय समाज आधुनिक हुआ है और इसने नारी को नए आयाम प्रदान किये है.
किन्तु आज भी इसका प्रभाव समाज के क्षेत्र में गाँवों के हर तबके तक नहीं पहुँचा है. नारी सुधार का ढोल पिछले ५९ वर्षो से पिटा जा रहा है. नारी को आत्मनिर्भर व् शिक्षित बनाने की कवायतें भी बहुत चल रही है, किन्तु सच्चाई और कड़वा सच यही है कि आज भी भारत के सुदूर गाँवों में जब कोई बेटी पैदा होती है, तो उसका बाप उससे कहता है कि बेटी मर जा, नहीं तो दहेज देना पड़ सकता है.
उसे या तो मार दिया जाता है अथवा क्रूर हाथो को बेच दिया जाता है. इस लेख के माध्यम से नारी सुधार की बात करने वालों को मैं कहना चाहता हूँ कि आज भी प्रतिदिन १७ महिलाए दहेज हत्याओ की शिकार हो रही है.
हर ४७ वे मिनिट में कहीं न कहीं किसी स्त्री के साथ बलात्कार होता है और ४४ वे मिनिट में अपहरण की कोई एक घटना होती है. बाल विवाह, बाल मजदूरी अल्पायु में शोषण, आधुनिकता की आड़ में भूर्ण हत्या जारी है, अपितु इनमे बढ़ोत्तरी ही हुई है.
सरकारी समस्या
राजनीति में आज भी महिलाओं का आरक्षण अटका पड़ा है, यहाँ तक की आजादी के छह दशक बाद भी नारी साक्षरता को मुश्किल से दोगुना किया जा सका है. गोरतलब है कि नारी विकास का मुद्दा सीधा साक्षरता से जुड़ा हुआ है. हम महिलाओं को पूरी तरह से साक्षर ही नहीं कर पाए, तो विकास तो दूर की बात है.
और सरकारी प्रयास तो मात्र इसी कहावत को चरितार्थ करते है, कि “मर्ज बढता गया, ज्यो ज्यो दवा की”.
जो उपयुक्त विषय के विदूषक है, में मात्र अपनी बात को कुछ शिक्षित व् सफल परिवारों की महिलाओं तक ही सीमित रखना चाहते है, जबकि ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रो की महिलाओं की समस्या पर वे मौन है.
वर्तमान परिदृश्य में नारी सफलता में मानदंड बदल गए है, प्राचीन समय ने वह घर की चहार दीवारी में रहती थी, तो आज उसे उन्मुक्त आकाश प्रदान कर दिया गया है. उपेक्षित तो वह पहले भी थी और आज भी है, पहले संकीर्ण मानसिकता, पुरुष प्रधान समाज और कठोर मर्यादाओ से उपेक्षित थी, तो आज आधुनिकता की आड़ में निम्न मानसिकता, शोषण और मात्र वस्तु बने रह जाने के कारण उपेक्षित है. बदलाव केवल दृष्टीकोण मे आया है. नारी की स्थिति में नहीं. हमने नारी को आधुनिक बनाया, किन्तु उसकी कोमल भावनाओ को नहीं समझा.
हमने नारी को महान बताया, किन्तु उसकी महानता को नहीं समझा, हमने नारी को समान अधिकार दिलाने की वकालत की, किन्तु उसके ग्रहस्त अधिकार को ही छीन लिया. आज मिडिया बाजार में उसे वस्तु के रूप में परोसा जा रहा है.
शिक्षितों की परेशानी (बेटियाँ आज भी उपेक्षित है)
शिक्षित महिलायें भी अपना मुँह बंद किये बेठी है. सामाजिक संस्थाए मात्र शेष दिखावे और जुलुस निकलने में ही व्यस्त है. काम काजी महिलाओ के शोषण का ग्राफ बढता जा रहा है. स्वयं मध्यप्रदेश बलात्कार के मामलों में देश में अव्वल स्थान प्राप्त कर चूका है.
अत: निष्कर्ष स्वरुप भारत की बेटियाँ, नारियाँ, महिलाएँ आज भी उपेक्षित है. वास्तव में उनकी प्रगति की सही रह को खोजा नहीं गया है. भारतीय संस्कृति और व्यवस्था के अनुरूप उसे नहीं दिशा नहीं दी गई है.
अत: आज आवश्यकता है भारत की बेटियों के सही भविष्य को विचारने की, उनकी स्थिति में सुधर की और वपक्षी के दृष्टीकोण में बदलाव की. तभी भारतीय संस्कृति के अनुयायी हम यह गर्व से कह सकेंगे.
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तन्त्र देवता:”
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